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शे'र
अज़ल से है आसमाँ ख़मीदा न कर सका फिर भी एक सजदावो ढूँढता है जिस आस्ताँ को वो आस्ताना मिला नहीं है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
ये आ’लम है ‘रियाज़’ एक एक क़तरा को तरसता हूँहरम में अब ख़ुदा जाने भरी बोतल कहाँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
मैं हूँ एक आशिक़-ए-बे-नवा तू नवाज़ अपने पयाम सेये तिरी रज़ा पे तिरी ख़ुशी तू पुकार ले किसी नाम से
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
मैं हूँ एक आ’शिक़-ए-बे-नवा तू नवाज़ अपने पयाम सेये तिरी रज़ा पे तिरी ख़ुशी तू पुकार ले किसी नाम से
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
चु नै ख़ाली शुदम अज़ आरज़ूहा लैक इ'श्क़-ए-ऊब-गोशम मी-दमद हर्फ़े कि मन नाचार मी-नालम